मेरी अनुमति के बिना इस ब्‍लाग की किसी भी सामग्री का किसी भी रूप में उपयोग करना मना है । ........ देव कान्‍त पाण्‍डेय

गुरुवार, 20 जून 2013

पहचान कौन

बेवजह, बिन बात चिल्‍लाने लगे हैं 
आजकल मुझपे वे झल्‍लाने लगे हैं 
प्रेम से भी बात जो उनसे करूं 
क्रोध से वे आंख दिखलाने लगे हैं । 
जो निकट जाने की मैं कोशिश करूं 
दूर हट जाने को समझाने लगे हैं । 
तोडकर वे प्‍यार की सारी हदें 
नफरतों के तीर बरसाने लगे हैं । 
मिन्‍नतें मेरी नहीं करतीं असर 
आंखों-आंखों मे ही धमकाने लगे हैं । 
देखकर उनकी ये ऐसी बेरूखी 
स्‍नेह के अब फूल मुरझाने लगे हैं ।
कोई कहता "देव" की पत्‍नी है ये 
और कुछ तो बॉस बतलाने लगे हैं । 
                                     ..... देवकान्‍त पाण्‍डेय

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