मेरी अनुमति के बिना इस ब्‍लाग की किसी भी सामग्री का किसी भी रूप में उपयोग करना मना है । ........ देव कान्‍त पाण्‍डेय

रविवार, 28 अप्रैल 2013

वाह री दिल्‍ली !

नहीं थम रहा, गली-चौक पर जारी है अपराध 
दिल्‍ली में बसने लगे वहशी और जल्‍लाद ?
वहशी और जल्‍लाद, है चिंतित घर-चौराहा 

मानवता और मूल्‍य हो चुके बिलकुल स्‍वाहा । 
मॉं-बेटी-बहनों पर हैं कुछ क्रूर निगाहें 
कस लेने की साजिश करती पापी बाहें 
गर्व-मान-सम्‍मान सभी पर खतरा भारी
कहत "देव" कवि दिल्‍ली को यह कौन बीमारी ।।
                                                                    ......Devkant Pandey




शनिवार, 27 अप्रैल 2013

गजल

अपनी पुस्‍तक में मैं अब भी गुलाब रखता हूं 
साथ में मुश्किलें, खुशियां, अजाब रखता हूं 
जिसकी हाथों की लकीरों में मेरा नाम न था 
उसकी खातिर भी वफा बेहिसाब रखता हूं । 
जो दौडता है लहू बन के मेरी नस-नस में 
उसकी खातिर ही मैं नैनों में ख्‍वाब रखता हूं । 
जिसने जीवन को मेरे नित नए मयार दिए 
उसकी सूरत को तो दिल में जनाब रखता हूं । 
                                                                            ..... देवकान्‍त पाण्‍डेय

रहनुमाओं...


वक्‍त है कुछ कर दिखाओ 

हौसला दिल में जगाओ 
देश शर्मिंदा बहुत है 
रहनुमाओं जाग जाओ । 



लुट रही सडकों पे अस्‍मत 
बेटियां दिखती हैं बेबस 
करने को उनको सुरक्षित 
मन में कुछ सुविचार लाओ ।



देश शर्मिंदा बहुत है 
रहनुमाओं जाग जाओ । 

क्‍या नहीं गैरत बची है ?
हाथों में मेंहदी रची है ?
गर नहीं उपचार है कुछ 
छोड दो पद, भाग जाओ । 

देश शर्मिंदा बहुत है 
रहनुमाओं जाग जाओ ।
           .... देव कान्‍त पाण्‍डेय

मेरा गांव


मन के घाव


मेरे जीवन की कथा में थोड़ी छाँव है थोड़ी धूप है,
जिंदगानी के सफ़र का देखिए क्या रूप है,
आज खोली है हृदय की मैंने अपनी डायरी,
मन मेरा तो वेदना से आप्लावित कूप है ।

जेठ की दारूण तपन जब लू भी थी ऊफान पर,
मैंने कुटिया थी बनाई रेत के मैदान पर,
मुझको नगर में बसने की आख़िर इजाज़त थी नहीं,
ना ठांव दूजा था कहीं...वहीं बस गया तो बस गया ।
                         
वो हमारे द्वार आया था सहारा माँगने,
उंगलियाँ पकड़ी थी, फिर पहुँचा लगा था थामने,
और एक दिन फिर उसी ने मेरी कुटिया छीन ली,
था आदमी वो 'आज का'... बस छल गया तो छल गया ।

मैंने स्वप्नों का बनाया था कभी एक आशियाँ,
जब तलक थी छत बनी तो चुप पड़ीं थीं आँधियाँ,
जैसे ही मेरे द्वार के श्रृंगार का आया समय,
बस आँधियों का वेग था... घर ढह गया तो ढह गया ।

इश्क़ की गहराइयों में मैं भी उतरा था कभी,
मुझे अपनों ने ही दगा दिया, मेरे काम ना आया कोई,
अपने विफल उस प्यार का मुझको नही अफ़सोस है,
प्यार यद्यपि था वो पहला....बस.. रह गया तो रह गया ।

जब बजी थीं घर में उसके प्रीति की शहनाइयां,
दिल में मेरे पसरी थीं बस दूर तक तनहाइयाँ,
फिर भी खुद डोली बिठाया मैंने अपने प्यार को,
आँखों ने था नम हो देखा प्रेम के इस हार को,
और फिर उस प्रेम की बातें पुरानी सोचकर....
आँखों से आँसू का दरिया बह गया तो बह गया।

मैंने सुनाया आपको जो मन के मेरे भाव थे,
मैंने दिखाया आपको जो मन के मेरे घाव थे,
आपने कैसे लिया... ये आप ही हैं जानते,
मैं तो भावों मे बहा... बस बह गया तो बह गया।

हर कोई है भोगता सुख-दुख इसी संसार में,
कह दिया मैंने जो कहना था खुले बाजार में,
कह के देखो हो गया इस दिल की पीड़ा का शमन,
मैं भी कहते कहते ही... अब थम गया तो थम गया ।
                                                                      ...देवकान्‍त पाण्‍डेय 

आजमगढ़




फेसबुकिया जिंदगी


नेट का बिल ढेर सारा बढ गया है      

ऑंख पर चश्‍मा बडा सा चढ गया है 
दोस्‍त कहते हैं, "नहीं उपचार इसका, 
फेसबुक का साया तुम पर पड गया है !
पत्‍नी भी चिंतित नजर आने लगी है 
पूछती है "नैन तो ना लड गया है ? 
प्रेयसी तुमने तो कोई ना बना ली..... ? ! "
..."देव" का बीपी भी अब तो बढ गया है ।

बोलिए अब आप ही हे यूजरों 
इल्‍जाम इतने सर पे मेरे मढ गया है 
कैसे छोडें "रूप की किताब" को 
दिल में जो गहराइयों तक गड गया है । 

                                         ......Devkant Pandey



मंगलवार, 23 अप्रैल 2013

ह्रदय का टूटना भी……….


है कुछ-कुछ सत्‍य और इतना कि ये घटना पुरानी है
जो कहना चाहें तो कह लें,  ये यौवन की नादानी है
बसा रक्‍खी थी आंखों में सुघर तस्‍वीर एक लेकिन
ह्रदय का टूटना भी, जिंदगी की एक कहानी है ।

खुशी में चूर थे, जीवन में रस की धार बहती थी
उसी के ख्‍याल में हर दिन,  हमारी शाम ढलती थी
बसाए ख्‍वाब नैनों में, ह्रदय में हसरतें ढेरों
जो मिलते थे बुलाने पर, तमन्‍नाएं मचलती थीं ।

नजर की नूर थी, हर पल निगाहों में बसा करती
हमारा पक्ष लेकर के, जमाने से लडा करती
तो फिर कैसे यकीं करते नहीं, हम उसकी बातों पे
रहेगा साथ जीवन भर, हमेशा ही कहा करती ।

न जाने क्‍या हुआ सहसा, कि वह मुंह मोड के बैठी
हमारे मिलने-जुलने की, वो आदत छोड के बैठी
हमारी जिंदगी को छोड कर, सुनसान राहों पर
बिना बोले बहुत कुछ यार, रिश्‍ता तोड के बैठी ।

कहा मजबूरियां हैं कुछ, मैं अब संग चल नहीं सकती
तुम्‍हारी भावनाओं की लहर में,  बह नहीं सकती
जो कहना चाहो तुम कह लो मुझे, या बेवफा समझो
तुम्‍हारे साथ बंधन में, नहीं मैं बंध नहीं सकती ।

ह्रदय पर चोट थी गहरी, संभलना हो गया मुश्किल
मेरे हिस्‍से में तन्‍हाई, उसे था मिल चुका साहिल
समय का चक्र तो चलता रहा, रफतार में अपनी
मेरी यादों में, सांसों में, रहा वो हर पहर शामिल ।

मुहब्‍बत क्‍यों हुई रूसवा, अलग वो एक कहानी है
खुले मंचों से गाकर के, नहीं मुझको सुनानी है
सुनेंगे लोग तो कोसेंगे, उसकी बेवफाई को
मुझे उस बेवफा की, बेवफाई भी छुपानी है ।

रहा अब कुछ नहीं बा‍की, खतम अब वो कहानी है 
महज यह गीत ही बाकी बचा उसकी निशानी है 
बदल डाले हैं दिल के भाव, जो प्रतिकूल थे उसके
है मदिरा अब नई, केवल बची बोतल पुरानी है । 
                                  ... Devkant Pandey