मेरी अनुमति के बिना इस ब्‍लाग की किसी भी सामग्री का किसी भी रूप में उपयोग करना मना है । ........ देव कान्‍त पाण्‍डेय

रविवार, 28 अप्रैल 2013

वाह री दिल्‍ली !

नहीं थम रहा, गली-चौक पर जारी है अपराध 
दिल्‍ली में बसने लगे वहशी और जल्‍लाद ?
वहशी और जल्‍लाद, है चिंतित घर-चौराहा 

मानवता और मूल्‍य हो चुके बिलकुल स्‍वाहा । 
मॉं-बेटी-बहनों पर हैं कुछ क्रूर निगाहें 
कस लेने की साजिश करती पापी बाहें 
गर्व-मान-सम्‍मान सभी पर खतरा भारी
कहत "देव" कवि दिल्‍ली को यह कौन बीमारी ।।
                                                                    ......Devkant Pandey




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