अपनी पुस्तक
में मैं अब भी गुलाब रखता हूं
साथ में मुश्किलें, खुशियां, अजाब रखता हूं
जिसकी हाथों की लकीरों में मेरा नाम न था
उसकी खातिर भी वफा बेहिसाब रखता हूं ।
जो दौडता है लहू बन के मेरी नस-नस में
उसकी खातिर ही मैं नैनों में ख्वाब रखता हूं ।
जिसने जीवन को मेरे नित नए मयार दिए
उसकी सूरत को तो दिल में जनाब
रखता हूं ।
..... देवकान्त पाण्डेय
साथ में मुश्किलें, खुशियां, अजाब रखता हूं
जिसकी हाथों की लकीरों में मेरा नाम न था
उसकी खातिर भी वफा बेहिसाब रखता हूं ।
जो दौडता है लहू बन के मेरी नस-नस में
उसकी खातिर ही मैं नैनों में ख्वाब रखता हूं ।
जिसने जीवन को मेरे नित नए मयार दिए
उसकी सूरत को तो दिल में जनाब रखता हूं ।
..... देवकान्त पाण्डेय
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