मेरी अनुमति के बिना इस ब्‍लाग की किसी भी सामग्री का किसी भी रूप में उपयोग करना मना है । ........ देव कान्‍त पाण्‍डेय

शनिवार, 27 अप्रैल 2013

गजल

अपनी पुस्‍तक में मैं अब भी गुलाब रखता हूं 
साथ में मुश्किलें, खुशियां, अजाब रखता हूं 
जिसकी हाथों की लकीरों में मेरा नाम न था 
उसकी खातिर भी वफा बेहिसाब रखता हूं । 
जो दौडता है लहू बन के मेरी नस-नस में 
उसकी खातिर ही मैं नैनों में ख्‍वाब रखता हूं । 
जिसने जीवन को मेरे नित नए मयार दिए 
उसकी सूरत को तो दिल में जनाब रखता हूं । 
                                                                            ..... देवकान्‍त पाण्‍डेय

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