मेरी अनुमति के बिना इस ब्‍लाग की किसी भी सामग्री का किसी भी रूप में उपयोग करना मना है । ........ देव कान्‍त पाण्‍डेय

गुरुवार, 20 जून 2013

पहचान कौन

बेवजह, बिन बात चिल्‍लाने लगे हैं 
आजकल मुझपे वे झल्‍लाने लगे हैं 
प्रेम से भी बात जो उनसे करूं 
क्रोध से वे आंख दिखलाने लगे हैं । 
जो निकट जाने की मैं कोशिश करूं 
दूर हट जाने को समझाने लगे हैं । 
तोडकर वे प्‍यार की सारी हदें 
नफरतों के तीर बरसाने लगे हैं । 
मिन्‍नतें मेरी नहीं करतीं असर 
आंखों-आंखों मे ही धमकाने लगे हैं । 
देखकर उनकी ये ऐसी बेरूखी 
स्‍नेह के अब फूल मुरझाने लगे हैं ।
कोई कहता "देव" की पत्‍नी है ये 
और कुछ तो बॉस बतलाने लगे हैं । 
                                     ..... देवकान्‍त पाण्‍डेय

बुधवार, 19 जून 2013

क्‍या खबर थी ...

कौन जाने कब कहॉं क्‍या हादसा हो जाएगा
दिल में बसने वालों से भी फासला हो जाएगा 

मत करो तारीफ खुल्‍ले में किसी अधीनस्‍थ की 
बॉस गर "हल्‍का" हुआ, उससे खफा हो जाएगा ।

दिल के मंदिर में बसा के पूजा जिसको रात-दिन
क्‍या खबर थी एक दिन वो बेवफा हो जाएगा । 
हम और तुम एक वस्‍तु हैं बस रहबरों के वास्‍ते  
काम है तो सुध लिया फिर लापता हो जाएगा । 
कब मिली आखिर सियासत में गरीबों को जमीं 
हक वो मांगें ...... ऐसा कैसे हौसला हो जाएगा ।
मसलहत, चालें, सियासत "देव"  तू भी सीख ले 
जिंदा रहने का यही अब फलसफा हो जाएगा ।   
                                          .... देवकान्‍त पाण्‍डेय

बेचता है ..

वो गीता-कुरां की कसम बेचता है 
दुकानें सजा कर धरम बेचता है 
वो सर से कदम तक शराफत पहनकर 
नशा-नफरते बेशरम बेचता है । 
वो बहुरूपिया है, लगा के मुखौटा 
खुलेआम दर-दर जहर बेचता है ।

वो दैरो-हरम की इबादत में घुस के 
पहन माला-टोपी कफन बेचता है ।  
वो गॉंधी के खद्दर में खुद को लपेटे 
नफासत से बिलकुल वतन बेचता है ।

तेरे जख्‍म भरने की दहलीज पर हैं 
बचो "देव"  उससे नमक बेचता है । 
                                         ... देवकांत पाण्‍डेय

मंगलवार, 18 जून 2013

चार दिन की जिंदगी है.....

नफरतों की तीर को न धार दीजिए 
चार दिन की जिंदगी है प्‍यार कीजिए ।
मकतबों में पढ लिए रोटी के फलसफे 
गांधी के उजले स्‍वप्‍न भी साकार कीजिए । 
मैं पूछता हूं सच तो फिर होती है क्‍यूं चुभन 
इस प्रश्‍न पर भी बैठकर विचार कीजिए । 
मैं हूं नहीं कमजोर कि बस टूट जाउंगा 
आप भी अपनी हदें न पार कीजिए । 
कोई "जिया" न यूं मरे "सूरज" की चाह में 
जिंदगी किसी की ना दुस्‍वार कीजिए  । 
जो चाहते हैं आप कि कोई गले मिले 
तो संग उसके वैसा ही व्‍यवहार कीजिए ।

यूं छोड के न जा मुझे तू मेरे हमसफर 
छोटी-मोटी बात दरकिनार कीजिए ।  
वो दूर है तो यातना सहती है हर नफस (सांस)
अब "देव" की इस व्‍याधि का उपचार कीजिए । 
                                              ......... देव कान्‍त पाण्‍डेय