मेरी अनुमति के बिना इस ब्‍लाग की किसी भी सामग्री का किसी भी रूप में उपयोग करना मना है । ........ देव कान्‍त पाण्‍डेय

बुधवार, 19 जून 2013

बेचता है ..

वो गीता-कुरां की कसम बेचता है 
दुकानें सजा कर धरम बेचता है 
वो सर से कदम तक शराफत पहनकर 
नशा-नफरते बेशरम बेचता है । 
वो बहुरूपिया है, लगा के मुखौटा 
खुलेआम दर-दर जहर बेचता है ।

वो दैरो-हरम की इबादत में घुस के 
पहन माला-टोपी कफन बेचता है ।  
वो गॉंधी के खद्दर में खुद को लपेटे 
नफासत से बिलकुल वतन बेचता है ।

तेरे जख्‍म भरने की दहलीज पर हैं 
बचो "देव"  उससे नमक बेचता है । 
                                         ... देवकांत पाण्‍डेय

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