मेरी अनुमति के बिना इस ब्‍लाग की किसी भी सामग्री का किसी भी रूप में उपयोग करना मना है । ........ देव कान्‍त पाण्‍डेय

मंगलवार, 18 जून 2013

चार दिन की जिंदगी है.....

नफरतों की तीर को न धार दीजिए 
चार दिन की जिंदगी है प्‍यार कीजिए ।
मकतबों में पढ लिए रोटी के फलसफे 
गांधी के उजले स्‍वप्‍न भी साकार कीजिए । 
मैं पूछता हूं सच तो फिर होती है क्‍यूं चुभन 
इस प्रश्‍न पर भी बैठकर विचार कीजिए । 
मैं हूं नहीं कमजोर कि बस टूट जाउंगा 
आप भी अपनी हदें न पार कीजिए । 
कोई "जिया" न यूं मरे "सूरज" की चाह में 
जिंदगी किसी की ना दुस्‍वार कीजिए  । 
जो चाहते हैं आप कि कोई गले मिले 
तो संग उसके वैसा ही व्‍यवहार कीजिए ।

यूं छोड के न जा मुझे तू मेरे हमसफर 
छोटी-मोटी बात दरकिनार कीजिए ।  
वो दूर है तो यातना सहती है हर नफस (सांस)
अब "देव" की इस व्‍याधि का उपचार कीजिए । 
                                              ......... देव कान्‍त पाण्‍डेय

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