नफरतों की तीर को न धार दीजिए
चार दिन की जिंदगी है प्यार कीजिए ।
मकतबों में पढ लिए रोटी के फलसफे
गांधी के उजले स्वप्न भी साकार कीजिए ।
मैं पूछता हूं सच तो फिर होती है क्यूं चुभन
इस प्रश्न पर भी बैठकर विचार कीजिए ।
मैं हूं नहीं कमजोर कि बस टूट जाउंगा
आप भी अपनी हदें न पार कीजिए ।
कोई "जिया" न यूं मरे "सूरज" की चाह में
जिंदगी किसी की ना दुस्वार कीजिए ।
जो चाहते हैं आप कि कोई गले मिले
तो संग उसके वैसा ही व्यवहार कीजिए ।
यूं छोड के न जा मुझे तू मेरे हमसफर
छोटी-मोटी बात दरकिनार कीजिए ।
वो दूर है तो यातना सहती है हर नफस (सांस)
अब "देव" की इस व्याधि का उपचार कीजिए ।
......... देव कान्त पाण्डेय
चार दिन की जिंदगी है प्यार कीजिए ।
मकतबों में पढ लिए रोटी के फलसफे
गांधी के उजले स्वप्न भी साकार कीजिए ।
मैं पूछता हूं सच तो फिर होती है क्यूं चुभन
इस प्रश्न पर भी बैठकर विचार कीजिए ।
मैं हूं नहीं कमजोर कि बस टूट जाउंगा
आप भी अपनी हदें न पार कीजिए ।
कोई "जिया" न यूं मरे "सूरज" की चाह में
जिंदगी किसी की ना दुस्वार कीजिए ।
जो चाहते हैं आप कि कोई गले मिले
तो संग उसके वैसा ही व्यवहार कीजिए ।
यूं छोड के न जा मुझे तू मेरे हमसफर
छोटी-मोटी बात दरकिनार कीजिए ।
वो दूर है तो यातना सहती है हर नफस (सांस)
अब "देव" की इस व्याधि का उपचार कीजिए ।
......... देव कान्त पाण्डेय
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें