मेरी अनुमति के बिना इस ब्‍लाग की किसी भी सामग्री का किसी भी रूप में उपयोग करना मना है । ........ देव कान्‍त पाण्‍डेय

शुक्रवार, 17 अक्तूबर 2008

त्रासदी

है हो रहा हिंसा का नंगा नाच सारे देश में,
हैं आततायी फ़िर रहे बेखौफ ढेरों वेश में,
रक्षक हमारे तान कर बन्दूक केवल हैं खड़े,
शासक हमारे अब भी हैं चिर नींद में सोये पड़े,
ये मौत कोई ना मरे यह सोचता ही कौन है,
इस प्रश्न पर तो देश की संसद भी अपनी मौन है।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें