है हो रहा हिंसा का नंगा नाच सारे देश में,
हैं आततायी फ़िर रहे बेखौफ ढेरों वेश में,
रक्षक हमारे तान कर बन्दूक केवल हैं खड़े,
शासक हमारे अब भी हैं चिर नींद में सोये पड़े,
ये मौत कोई ना मरे यह सोचता ही कौन है,
इस प्रश्न पर तो देश की संसद भी अपनी मौन है।
हैं आततायी फ़िर रहे बेखौफ ढेरों वेश में,
रक्षक हमारे तान कर बन्दूक केवल हैं खड़े,
शासक हमारे अब भी हैं चिर नींद में सोये पड़े,
ये मौत कोई ना मरे यह सोचता ही कौन है,
इस प्रश्न पर तो देश की संसद भी अपनी मौन है।
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