देवलधाम
है मदिरा अब नई, केवल बची बोतल पुरानी है..
मेरी अनुमति के बिना इस ब्लाग की किसी भी सामग्री का किसी भी रूप में उपयोग करना मना है । ........ देव कान्त पाण्डेय
शनिवार, 17 अगस्त 2013
शनिवार, 13 जुलाई 2013
गजल
बातों बातों में ही कुछ बात निकल जाती है
नासाज तबीयत भी मुस्का के मचल जाती है ।
गर हो जाए जरा सी भी खुदा की रहमत
चंद लम्हों में भी तकदीर
बदल जाती है ।
आज के दौर में फितरत है
ये सियासत की
रूह को कत्ल कर जज्बों को
निगल जाती है ।
बहुत पहले ही कह गए ये खुदा के बंदे
जिंदगी रेत है मुट्ठी से फिसल जाती है ।
मेरे महबूब की चाहत का है ये कैसा असर
शाम होते ही शमां याद की जल जाती है ।
बिता के साथ में उनके हसीन कुछ घड़ियां
धूप जीवन की मेरे बर्फ सी गल जाती है ।
बुझी-बुझी सी अब रंगत हुई है खेतों की
शहर की आग यूं गांवों को निगल जाती है ।
समां क्यूं हो गया ऐसा है “देव” दुनिया का
शजर की छांव अब सरसर* से दहल
जाती है ।
...... देवकान्त
पाण्डेय
*गर्म हवा के झोंके
गुरुवार, 20 जून 2013
पहचान कौन
बेवजह, बिन बात चिल्लाने लगे हैं
आजकल मुझपे वे झल्लाने लगे हैं
प्रेम से भी बात जो उनसे करूं
क्रोध से वे आंख दिखलाने लगे हैं ।
जो निकट जाने की मैं कोशिश करूं
दूर हट जाने को समझाने लगे हैं ।
तोडकर वे प्यार की सारी हदें
नफरतों के तीर बरसाने लगे हैं ।
मिन्नतें मेरी नहीं करतीं असर
आंखों-आंखों मे ही धमकाने लगे हैं ।
देखकर उनकी ये ऐसी बेरूखी
स्नेह के अब फूल मुरझाने लगे हैं ।
कोई कहता "देव" की पत्नी है ये
और कुछ तो बॉस बतलाने लगे हैं ।
..... देवकान्त पाण्डेय
आजकल मुझपे वे झल्लाने लगे हैं
प्रेम से भी बात जो उनसे करूं
क्रोध से वे आंख दिखलाने लगे हैं ।
जो निकट जाने की मैं कोशिश करूं
दूर हट जाने को समझाने लगे हैं ।
तोडकर वे प्यार की सारी हदें
नफरतों के तीर बरसाने लगे हैं ।
मिन्नतें मेरी नहीं करतीं असर
आंखों-आंखों मे ही धमकाने लगे हैं ।
देखकर उनकी ये ऐसी बेरूखी
स्नेह के अब फूल मुरझाने लगे हैं ।
कोई कहता "देव" की पत्नी है ये
और कुछ तो बॉस बतलाने लगे हैं ।
..... देवकान्त पाण्डेय
बुधवार, 19 जून 2013
क्या खबर थी ...
कौन जाने कब कहॉं क्या हादसा हो जाएगा
दिल में बसने वालों से भी फासला हो जाएगा
मत करो तारीफ खुल्ले में किसी अधीनस्थ की
बॉस गर "हल्का" हुआ, उससे खफा हो जाएगा ।
दिल के मंदिर में बसा के पूजा जिसको रात-दिन
क्या खबर थी एक दिन वो बेवफा हो जाएगा ।
हम और तुम एक वस्तु हैं बस रहबरों के वास्ते
काम है तो सुध लिया फिर लापता हो जाएगा ।
कब मिली आखिर सियासत में गरीबों को जमीं
हक वो मांगें ...... ऐसा कैसे हौसला हो जाएगा ।
मसलहत, चालें, सियासत "देव" तू भी सीख ले
जिंदा रहने का यही अब फलसफा हो जाएगा ।
.... देवकान्त पाण्डेय
दिल में बसने वालों से भी फासला हो जाएगा
मत करो तारीफ खुल्ले में किसी अधीनस्थ की
बॉस गर "हल्का" हुआ, उससे खफा हो जाएगा ।
दिल के मंदिर में बसा के पूजा जिसको रात-दिन
क्या खबर थी एक दिन वो बेवफा हो जाएगा ।
हम और तुम एक वस्तु हैं बस रहबरों के वास्ते
काम है तो सुध लिया फिर लापता हो जाएगा ।
कब मिली आखिर सियासत में गरीबों को जमीं
हक वो मांगें ...... ऐसा कैसे हौसला हो जाएगा ।
मसलहत, चालें, सियासत "देव" तू भी सीख ले
जिंदा रहने का यही अब फलसफा हो जाएगा ।
.... देवकान्त पाण्डेय
बेचता है ..
वो गीता-कुरां की कसम बेचता है
दुकानें सजा कर धरम बेचता है
वो सर से कदम तक शराफत पहनकर
नशा-नफरते बेशरम बेचता है ।
वो बहुरूपिया है, लगा के मुखौटा
खुलेआम दर-दर जहर बेचता है ।
वो दैरो-हरम की इबादत में घुस के
पहन माला-टोपी कफन बेचता है ।
वो गॉंधी के खद्दर में खुद को लपेटे
नफासत से बिलकुल वतन बेचता है ।
तेरे जख्म भरने की दहलीज पर हैं
बचो "देव" उससे नमक बेचता है ।
... देवकांत पाण्डेय
दुकानें सजा कर धरम बेचता है
वो सर से कदम तक शराफत पहनकर
नशा-नफरते बेशरम बेचता है ।
वो बहुरूपिया है, लगा के मुखौटा
खुलेआम दर-दर जहर बेचता है ।
वो दैरो-हरम की इबादत में घुस के
पहन माला-टोपी कफन बेचता है ।
वो गॉंधी के खद्दर में खुद को लपेटे
नफासत से बिलकुल वतन बेचता है ।
तेरे जख्म भरने की दहलीज पर हैं
बचो "देव" उससे नमक बेचता है ।
... देवकांत पाण्डेय
मंगलवार, 18 जून 2013
चार दिन की जिंदगी है.....
नफरतों की तीर को न धार दीजिए
चार दिन की जिंदगी है प्यार कीजिए ।
मकतबों में पढ लिए रोटी के फलसफे
गांधी के उजले स्वप्न भी साकार कीजिए ।
मैं पूछता हूं सच तो फिर होती है क्यूं चुभन
इस प्रश्न पर भी बैठकर विचार कीजिए ।
मैं हूं नहीं कमजोर कि बस टूट जाउंगा
आप भी अपनी हदें न पार कीजिए ।
कोई "जिया" न यूं मरे "सूरज" की चाह में
जिंदगी किसी की ना दुस्वार कीजिए ।
जो चाहते हैं आप कि कोई गले मिले
तो संग उसके वैसा ही व्यवहार कीजिए ।
यूं छोड के न जा मुझे तू मेरे हमसफर
छोटी-मोटी बात दरकिनार कीजिए ।
वो दूर है तो यातना सहती है हर नफस (सांस)
अब "देव" की इस व्याधि का उपचार कीजिए ।
......... देव कान्त पाण्डेय
चार दिन की जिंदगी है प्यार कीजिए ।
मकतबों में पढ लिए रोटी के फलसफे
गांधी के उजले स्वप्न भी साकार कीजिए ।
मैं पूछता हूं सच तो फिर होती है क्यूं चुभन
इस प्रश्न पर भी बैठकर विचार कीजिए ।
मैं हूं नहीं कमजोर कि बस टूट जाउंगा
आप भी अपनी हदें न पार कीजिए ।
कोई "जिया" न यूं मरे "सूरज" की चाह में
जिंदगी किसी की ना दुस्वार कीजिए ।
जो चाहते हैं आप कि कोई गले मिले
तो संग उसके वैसा ही व्यवहार कीजिए ।
यूं छोड के न जा मुझे तू मेरे हमसफर
छोटी-मोटी बात दरकिनार कीजिए ।
वो दूर है तो यातना सहती है हर नफस (सांस)
अब "देव" की इस व्याधि का उपचार कीजिए ।
......... देव कान्त पाण्डेय
बुधवार, 29 मई 2013
रविवार, 28 अप्रैल 2013
वाह री दिल्ली !
नहीं थम रहा, गली-चौक पर
जारी है अपराध
दिल्ली में बसने लगे वहशी और जल्लाद ?
वहशी और जल्लाद, है चिंतित घर-चौराहा
मानवता और मूल्य हो चुके बिलकुल स्वाहा ।
मॉं-बेटी-बहनों पर हैं कुछ क्रूर निगाहें
कस लेने की साजिश करती पापी बाहें
गर्व-मान-सम्मान सभी पर खतरा भारी
कहत "देव" कवि दिल्ली को यह कौन बीमारी ।।
दिल्ली में बसने लगे वहशी और जल्लाद ?
वहशी और जल्लाद, है चिंतित घर-चौराहा
मानवता और मूल्य हो चुके बिलकुल स्वाहा ।
मॉं-बेटी-बहनों पर हैं कुछ क्रूर निगाहें
कस लेने की साजिश करती पापी बाहें
गर्व-मान-सम्मान सभी पर खतरा भारी
कहत "देव" कवि दिल्ली को यह कौन बीमारी ।।
......Devkant Pandey
शनिवार, 27 अप्रैल 2013
गजल
अपनी पुस्तक
में मैं अब भी गुलाब रखता हूं
साथ में मुश्किलें, खुशियां, अजाब रखता हूं
जिसकी हाथों की लकीरों में मेरा नाम न था
उसकी खातिर भी वफा बेहिसाब रखता हूं ।
जो दौडता है लहू बन के मेरी नस-नस में
उसकी खातिर ही मैं नैनों में ख्वाब रखता हूं ।
जिसने जीवन को मेरे नित नए मयार दिए
उसकी सूरत को तो दिल में जनाब
रखता हूं ।
..... देवकान्त पाण्डेय
साथ में मुश्किलें, खुशियां, अजाब रखता हूं
जिसकी हाथों की लकीरों में मेरा नाम न था
उसकी खातिर भी वफा बेहिसाब रखता हूं ।
जो दौडता है लहू बन के मेरी नस-नस में
उसकी खातिर ही मैं नैनों में ख्वाब रखता हूं ।
जिसने जीवन को मेरे नित नए मयार दिए
उसकी सूरत को तो दिल में जनाब रखता हूं ।
..... देवकान्त पाण्डेय
रहनुमाओं...
वक्त है
कुछ कर दिखाओ
हौसला दिल में जगाओ
देश शर्मिंदा बहुत है
रहनुमाओं जाग जाओ ।
लुट रही सडकों पे अस्मत
बेटियां दिखती हैं बेबस
करने को उनको सुरक्षित
मन में कुछ सुविचार लाओ ।
देश शर्मिंदा बहुत है
रहनुमाओं जाग जाओ ।
क्या नहीं गैरत बची है ?
हाथों में मेंहदी रची है ?
गर नहीं उपचार है कुछ
छोड दो पद, भाग जाओ ।
देश शर्मिंदा बहुत है
रहनुमाओं जाग जाओ ।
.... देव कान्त पाण्डेय
मन के घाव
मेरे जीवन की कथा में थोड़ी छाँव है थोड़ी धूप है,
जिंदगानी के सफ़र का देखिए
क्या रूप है,
आज खोली है हृदय की मैंने
अपनी डायरी,
मन मेरा तो वेदना से आप्लावित
कूप है ।
जेठ की दारूण तपन जब लू भी थी ऊफान पर,
मैंने कुटिया थी बनाई रेत के मैदान पर,
मुझको नगर में बसने की आख़िर इजाज़त थी नहीं,
ना ठांव दूजा था कहीं...वहीं बस गया तो बस गया ।
वो हमारे द्वार आया था
सहारा माँगने,
उंगलियाँ पकड़ी थी, फिर पहुँचा लगा था थामने,
और एक दिन फिर उसी ने
मेरी कुटिया छीन ली,
था आदमी वो 'आज का'... बस छल गया तो छल गया ।
मैंने स्वप्नों का बनाया था
कभी एक आशियाँ,
जब तलक थी छत बनी तो चुप
पड़ीं थीं आँधियाँ,
जैसे ही मेरे द्वार के श्रृंगार
का आया समय,
बस आँधियों का वेग था... घर
ढह गया तो ढह गया ।
इश्क़ की गहराइयों में
मैं भी उतरा था कभी,
मुझे अपनों ने ही दगा
दिया, मेरे काम ना आया कोई,
अपने विफल उस प्यार का
मुझको नही अफ़सोस है,
प्यार यद्यपि था वो
पहला....बस.. रह गया तो रह गया ।
जब बजी थीं घर में उसके
प्रीति की शहनाइयां,
दिल में मेरे पसरी थीं बस
दूर तक तनहाइयाँ,
फिर भी खुद डोली बिठाया
मैंने अपने प्यार को,
आँखों ने था नम हो देखा
प्रेम के इस हार को,
और फिर उस प्रेम की बातें
पुरानी सोचकर....
आँखों से आँसू का दरिया
बह गया तो बह गया।
मैंने सुनाया आपको जो मन
के मेरे भाव थे,
मैंने दिखाया आपको जो मन
के मेरे घाव थे,
आपने कैसे लिया... ये आप
ही हैं जानते,
मैं तो भावों मे बहा...
बस बह गया तो बह गया।
हर कोई है भोगता सुख-दुख इसी संसार में,
कह दिया मैंने जो कहना था खुले बाजार में,
कह के देखो हो गया इस दिल की पीड़ा का शमन,
मैं भी कहते कहते ही... अब थम गया तो थम गया ।
...देवकान्त पाण्डेय
फेसबुकिया जिंदगी
नेट का बिल ढेर सारा बढ गया है
ऑंख पर चश्मा बडा
सा चढ गया है
दोस्त कहते हैं, "नहीं उपचार इसका,
फेसबुक का साया तुम पर पड गया है !
दोस्त कहते हैं, "नहीं उपचार इसका,
फेसबुक का साया तुम पर पड गया है !
पत्नी भी चिंतित
नजर आने लगी है
पूछती है "नैन तो ना लड गया है ?
प्रेयसी तुमने तो कोई ना बना ली..... ? ! "
..."देव" का बीपी भी अब तो बढ गया है ।
बोलिए अब आप ही हे यूजरों
इल्जाम इतने सर पे मेरे मढ गया है
कैसे छोडें "रूप की किताब" को
दिल में जो गहराइयों तक गड गया है ।
......Devkant Pandey
पूछती है "नैन तो ना लड गया है ?
प्रेयसी तुमने तो कोई ना बना ली..... ? ! "
..."देव" का बीपी भी अब तो बढ गया है ।
बोलिए अब आप ही हे यूजरों
इल्जाम इतने सर पे मेरे मढ गया है
कैसे छोडें "रूप की किताब" को
दिल में जो गहराइयों तक गड गया है ।
......Devkant Pandey
मंगलवार, 23 अप्रैल 2013
ह्रदय का टूटना भी……….
है कुछ-कुछ सत्य और इतना कि ये घटना पुरानी
है
जो कहना चाहें तो कह लें, ये यौवन की नादानी है
बसा रक्खी थी आंखों में सुघर तस्वीर एक
लेकिन
ह्रदय का टूटना भी, जिंदगी की एक कहानी है ।
खुशी में चूर थे, जीवन में रस की धार बहती थी
उसी के ख्याल में हर दिन, हमारी शाम ढलती थी
बसाए ख्वाब नैनों में, ह्रदय में
हसरतें ढेरों
जो मिलते थे बुलाने पर, तमन्नाएं
मचलती थीं ।
नजर की नूर थी, हर पल निगाहों में बसा करती
हमारा पक्ष लेकर के, जमाने से लडा करती
तो फिर कैसे यकीं करते नहीं, हम उसकी
बातों पे
रहेगा साथ जीवन भर, हमेशा ही कहा करती ।
न जाने क्या हुआ सहसा, कि वह मुंह
मोड के बैठी
हमारे मिलने-जुलने की, वो आदत छोड
के बैठी
हमारी जिंदगी को छोड कर, सुनसान राहों
पर
बिना बोले बहुत कुछ यार, रिश्ता तोड
के बैठी ।
कहा मजबूरियां हैं कुछ, मैं अब संग
चल नहीं सकती
तुम्हारी भावनाओं की लहर में, बह नहीं सकती
जो कहना चाहो तुम कह लो मुझे, या बेवफा
समझो
तुम्हारे साथ बंधन में, नहीं मैं बंध
नहीं सकती ।
ह्रदय पर चोट थी गहरी, संभलना हो
गया मुश्किल
मेरे हिस्से में तन्हाई, उसे था मिल
चुका साहिल
समय का चक्र तो चलता रहा, रफतार में
अपनी
मेरी यादों में, सांसों में, रहा वो हर पहर शामिल ।
मुहब्बत क्यों हुई रूसवा, अलग वो एक
कहानी है
खुले मंचों से गाकर के, नहीं मुझको
सुनानी है
सुनेंगे लोग तो कोसेंगे, उसकी बेवफाई
को
मुझे उस बेवफा की, बेवफाई भी छुपानी है ।
रहा अब कुछ नहीं बाकी, खतम अब वो कहानी है
महज यह गीत ही बाकी बचा उसकी निशानी है ।
महज यह गीत ही बाकी बचा उसकी निशानी है ।
बदल डाले हैं दिल के भाव, जो प्रतिकूल थे उसके
है मदिरा अब नई, केवल बची बोतल पुरानी है ।
... Devkant Pandey
है मदिरा अब नई, केवल बची बोतल पुरानी है ।
... Devkant Pandey
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